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Tuesday, July 16, 2013

दीक्षा


प्रेषक : राजीव
इस कहानी को लिखने के लिये मुझे प्रेरित किया अन्तर्वासना के उत्कृष्ट लेखक श्री लीलाधर ने, मैं आभारी हूँ उनका, उन्होंने
इस कहानी को न केवल पढ़ा बल्कि सम्पादन करके इसमें बहुत निखार ला दिया।
कम उम्र के किशोर की स्थिति बड़ी ही विचित्र होती है। यौवनागमन पर शरीर में हो रहे परिवर्तन उसे उन अनुभवों की ओर लिए जाते हैं जिन्हें वह खुद नहीं समझ पाता। उम्र के उस झुटपुटे में मेरे लिये भी सेक्स एक अन्‍जान विषय था कि तभी संजना दीदी ने आकर उसमें रहस्यों के वे द्वार खोले कि मैं हैरान रह गया। मैं उन्हें अपने यौवन के प्रथम गुरु का दर्जा देता हूँ। वो हमारे पड़ोस में रहती थी। वो मुझसे 6 वर्ष बड़ी थी और मैं उन्हें संजना दीदी बोलता था। हमारे दोनों परिवारों के बीच बराबर आना-जाना था।
घटना करीब 18 साल पुरानी है। मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ता था, मेरी और मेरे छोटे भाई की परीक्षाएँ चल रही थीं। तभी मेरे ममेरे भाई का स्‍वर्गवास हो गया और मेरे मम्मी-पापा को तुरन्‍त मामा जी के घर जाना पड़ा। परीक्षा के कारण पिताजी ने कहा कि तुम दोनों भाई घर पर ही रहकर पढ़ाई करो, हम मामा के घर से दो दिन बाद वापिस आ जायेंगे।
हम दोनों भाई ऐसे नहीं थे कि अपने लिए खाना बना सकें इसलिए मम्‍मी ने कहा कि खाना बनाने के लिये पड़ोस में रहने वाली संजना को बोल देती हूँ, वो आकर तुम दोनों का खाना बना देगी। बस दो दिन की बात है किसी तरह काम चला लो।
वो शनिवार का दिन था। सुबह सुबह मम्‍मी-पापा मामा के घर चले गये और हम दोनों भाई स्‍कूल परीक्षा देने। दोपहर को जब हम दोनों स्‍कूल से वापस आये तो देखा कि संजना दीदी हमारे घर आकर खाना बना चुकी हैं और हम दोनों भाइयों का इंतजार कर रही हैं।
उन्‍होंने हमें गर्म खाना खिलाया और शाम को दुबारा आने को बोल कर अपने घर चली गईं।
हम दोनों भाई भी खेलने चले गये। शाम को खेलकर जब मैं संजना दीदी के घर गया तो उनकी मम्‍मी ने मुझे बहुत डाँट लगाई, बोली- तेरी मम्‍मी घर में नहीं हैं और तूने सारा दिन खेलने में बिता दिया? अगली परीक्षा की तैयारी भी नहीं की? अब आज रात को संजना दीदी तेरे घर में ही रहेगी और तेरी परीक्षा की तैयारी कराएगी। अगर इस बार भी तूने लापरवाही कि तो मेरी मार तो पक्‍की।
मैंने डरकर तुरंत हाँ कर दी।
रात को संजना दीदी अपने घर का काम निपटाकर मेरे घर आईं। उन्होंने प्रेम से खाना बनाकर हम दोनों भाइयों को खिलाया। पढ़ाने के समय बिजली चली गई। संजना दीदी हम दोनों भाइयों को पढ़ाने के लिए छत पर ले गईं। वहाँ करीब 11 बजे तक हमने उनसे पढ़ाई की, उसके बाद हम सब सोने लगे।
बिजली नहीं होने के कारण मैं नीचे घर से एक चादर ले आया और उसी को छत पर बिछा कर हम दोनों भाई सो गये। मेरा भाई थका होने के कारण लेटते ही सो गया। संजना दीदी की भी पलकें भारी हो रही थीं। वे बात करते-करते मेरे बराबर में ही लेट गईं।
मैंने पूछा- दीदी, आपको अलग से चादर ला दूँ?
उन्‍होंने मना कर दिया, बोली- अभी तेरे पास ही लेट जाती हूँ, थोड़ी देर बाद चली जाऊँगी।
मेरे लिये उनको इतने करीब महसूस करना पहली बार हो रहा था। इससे पहले कभी मैंने इस बारे में सोचा भी नहीं था। उनका सामिप्य मुझे अच्छा लग रहा था। मैं उऩसे बात कर रहा था लेकिन मादा स्‍पर्श से प्रकृति की स्वाभाविक प्रेरणा मेरे लिंग पर असर डालने लगी। थोड़ी देर में तनाव मेरी निक्‍कर पर भी महसूस होने लगा।
संजना दीदी ने भी इसे महसूस कर लिया। वो अपना हाथ आगे बढ़ा कर बोली- यह क्‍या है?
मैं कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था।
वो गुस्‍से में बोली- मेरे बारे में ऐसी सोच रखता है? तुझे पता है कि तू मेरे से कितना छोटा है? तुझे शर्म नहीं आती?
मैं डर से भागकर नीचे अपने कमरे में आ गया। पीछे पीछे संजना दीदी भी नीचे आ गई तो मेरी हालत और खराब हो गई लेकिन संजना दीदी बोली- इतना डरने की जरूरत नहीं है पर तू मेरे बारे में ऐसा सोचता है, तूने कभी बताया नहीं?
मैंने कहा- दीदी, मैं क्‍या सोचता हूँ, मुझे खुद समझ में नहीं आ रहा।
दीदी ने निक्‍कर के ऊपर से ही मेरे लिंग को स्‍पर्श किया और बोली- मतलब तू नहीं सोचता, तेरा यह पप्‍पू सोचता है।
मैं तो इतना डर चुका था कि जवाब देने की हिम्‍मत ही नहीं जुटा पा रहा था। तभी दीदी बोली- जरा दिखा अपना पप्‍पू ! देखूँ तो कैसा है?
डर के बावजूद मुझे दीदी का स्‍पर्श बड़ा सुखदायी लग रहा था, मन कर रहा था वो वहाँ से हाथ ना हटाएँ।
दीदी ने मेरी निक्‍कर को नीचे कर दिया, मेरा 'पप्‍पू' तोप की तरह तना था, गोले छोड़ने को तैयार।
दीदी ने बहुत ही प्‍यार से उसे अपने मुलायम हाथों में ले लिया और आगे-पीछे रगड़ना शुरू कर दिया। मेरे जीवन के उस असीम आनन्‍द की कल्‍पना से आज भी सिहर उठता हूँ।
कुछ समय बाद ही मेरे लिंग में से क्रीम कलर का द्रव निकलने लगा। दीदी ने कपड़ा उठा कर उसको साफ कर दिया। साफ करने के बाद दीदी ने पूछा- कैसा लगा?
मेरे पास शब्‍द नहीं थे।
मेरे चेहरे पर खुशी की लहर और मुस्‍कुराहट देखकर दीदी बोली- तेरा चेहरा बता रहा है कि तुझे बहुत मजा आया?
मैंने हाँ में अपना सर हिला दिया।
थोड़ी देर बाद मैंने हिम्मत करके दीदी से कहा- एक बार फिर से करो ना, बहुत अच्‍छा लग रहा था।
दीदी ने पूछा- तुझे पता है तू क्या कर रहा था?
मुझे पता नहीं था।
दीदी ने मेरे लिंग को हाथ में पकड़ कर कहा- अच्छा बता, यह पप्‍पू किस काम आता है?
मैंने कहा- सू सू करने के !
दीदी हँस पड़ी- अभी थोड़ी देर पहले जो इसमें से निकला, वो क्‍या सू सू था?
मैंने कहा- नहीं, कुछ मलाई जैसा था।
"बस तो फिर यह समझ ले कि ये पप्‍पू सू सू करने के अलावा भी और बहुत महत्‍वपूर्ण काम करता है।"
मेरी आँखों में बस जिज्ञासा थी।
दीदी दो क्षण ठहरी, फिर बोली- तुझे ये सब कुछ सीखना है क्‍या?
मैंने पूरी तरह से सम्मोहित था और इसी सम्‍मोहन में मैंने कहा- हाँ !
दीदी बोली- मैं तुझे सब कुछ सिखा दूंगी, पर वादा करना होगा कि किसी को नहीं बतायेगा।
अब तो उस दिव्‍य ज्ञान को प्राप्‍त करने के लिये मैं कुछ भी करने के लिये तैयार था, मैंने वादा कर लिया किसी को कुछ नहीं बताऊँगा।
दीदी ने मेरा कान पकड़ा और कठोर स्वर में चेताया- किसी को भी बताएगा तो तेरे मम्मी-पापा से तेरी शिकायत कर दूंगी।
मैं डर और सम्मोहन, इन दो मनोभावों के वशीभूत था, मुझे पता भी नहीं चला कब बिजली आ गई थी।
दीदी ने पंखे की हवा में उड़ते अपने कुर्ते का निचला सिरा पकड़ा और मेरी आँखों में देखते हुए उसे धीरे धीरे उठाने लगी।
मेरी आँखें फैल गईं। ब्रा में ढके उनके सधे हुए स्तन मेरे सामने आ गए। पूर्ण विकसित युवती का वक्ष। जिंदगी में पहली बार देख रहा था। मेरा 'पप्‍पू' आँधी सी उठाती उत्तेजना के सामने बेकाबू था।
दीदी ने मेरे लिंग की ओर संकेत करते हुए कहा- तेरे पप्‍पू को तो तेरे से भी ज्‍यादा जल्‍दी है !?
मेरी सूखी सी आवाज निकली- नहीं दीदी, आप जैसा बोलोगी, मैं वैसा ही करूंगा। यह पप्‍पू पता नहीं क्‍यों मेरे काबू में नहीं है।
"आज यह तेरे नहीं, मेरे काबू में है।" कहते हुए दीदी ने अपने हाथ पीठ पीछे ले जाकर हुक खोल दिए और कंधों से सरकाते हुए ब्रा उतार कर अलग कर खाट पर रख दी।
मेरी आँखों के सामने उनके दोनों स्तन पूरे गर्व से खड़े थे, साँसों की गति पर ऊपर नीचे होते। मेरी साँस बहुत तेजी से चलने लगी। मैं खुद पर से अपना नियन्‍त्रण खोकर पूरी तरह से दीदी के वश में था।
दीदी ने मुझे अपने पास खींचा और मेरा मुँह पकड़कर अपने बाएँ वक्ष पर लगा दिया। उसकी भूरे रंग की टोपी मेरे मुँह में थी और मुझे शहद जैसा आनन्‍द दे रही थी।
उत्‍तेजनावश मैंने दीदी के वक्ष पर काट लिया। दीदी के मुँह से निकल रही लयपूर्ण सी...सी... की आवाज में ऊँची 'आह' का हस्तक्षेप हुआ।
उसने मेरा सिर थपथपाया और कहा- धीरे धीरे कर न। अब तो ये दूध का गोदाम तेरा ही है। जितना चाहे उतना पीना।
दीदी की बात मेरी समझ में आ गई और मैंने फिर धीरे धीरे प्‍यार से पीना शुरू कर दिया। बदल-बदलकर कभी दायें को पीता, कभी बायें को !
दीदी को अपूर्व सुख मिल रहा था, उनका हाथ मेरे लिंग पर प्यार से घूम रहा था।
रात अपने दूसरे पहर में प्रवेश कर चुकी थी और मैं इस दुनिया से आनन्‍द के स्वर्ग में पहुँच चु‍का था जहाँ संजना दीदी मुझे साक्षात रति की देवी नजर आ रही थी।
मैं बस उन दुग्धकलशों को पिए जा रहा था, मुझे इससे ज्‍यादा कुछ आता भी तो नहीं था।
दीदी ने मेरा प्रवेश अगली कक्षा में कराने का फैसला किया, मुझसे बोली- सिर्फ दूध ही पीता रहेगा या मलाई भी खायेगा?
मैंने कहा- आपका शिष्‍य हूँ। अभी तक आपने सिर्फ दूध पीना ही तो सिखाया है।
दीदी उठ खड़ी हुई और अपनी सलवार की डोरी झटके से खींच दी। कमर से डोरी ढीली करके एक क्षण मेरी आँखों में देखा और...
देखने के लिए एक बटा दस सेकंड चाहिए होते हैं। सेकंड के उस दसवें हिस्से में उनकी गोरी कमर, जांघों, घुटनों को प्रकट करती हुई सलवार के एड़ियों के पास जमा हो जाने का दृश्य मेरी आँखों में रील की तरह दर्ज हो गया। अब दीदी, एक पूरी औरत, अपनी पूर्ण प्राकृतिक नग्‍नावस्‍था में मेरे सामने थी।
मैं, जो अब तक दूध के कलशों पर ही सम्मोहित था, बेवकूफ-सा उनकी टांगों के बीच के काले घास के मैदान पर जाकर अटक गया। लग रहा था उसे देखना वर्जित है पर न जाने किस प्रेरणा से मेरी निगाह वहीं बँध गई थी। कभी ऐसा दृश्य देखा नहीं था। मुझे वहाँ निहारना अच्‍छा लग रहा था। मेरा 'पप्‍पू' भी विकराल हो गया था।
दीदी बोली- ज़न्‍नत का दरवाजा दिखाई देते ही दूध का गोदाम छोड़ दिया? तुझे पता है कि इस जन्‍नत में जाने का रास्‍ता दूध के गोदाम से होकर ही जाता है?
मैंने पूछा- दीदी, वो कैसे?
दीदी हँसने लगी। वो मेरे सामने बैठ गई। वो मुझसे बड़ी थी, उन्हें मेरी खाट के सामने जमीन पर बैठते देख मुझे बहुत संकोच हुआ। उन्होंने मेरे लिंग को अपने नाजुक हाथों में पकड़कर प्‍यार से सहलाया। फिर अपना मुँह आगे बढाया और उसके मुँह पर "पुच्च..." एक चुम्मी दे दी।
मुझे नहीं मालूम था इसे चूमा भी जाता है, पर वो मेरी गुरू थी, उन्होंने मुझसे पूछा- कैसा लगा?
"बहुत अच्छा !" उन्होंने उसे अपने मुँह में खींच लिया और लालीपोप की तरह चूसने लगी।
यह मेरे लिये सर्वथा नया अनुभव था। मैंने कुछ देर पहले ही प्राप्त हुए अनुभव के आधार पर दीदी के वक्षों को सहलाना शुरू कर दिया।
थोड़ी देर बाद दीदी फर्श से उठी और मुझे बिस्‍तर पर लिटा दिया। उसके बाद घूमी और मेरे ऊपर खुद इस तरह लेट गई कि मेरा लिंग पूरी उनके मुँह की तरफ आ गया और उनकी दोनों टांगों का संधिस्थल मेरे मुंह की तरफ। उन्‍होंने मेरा लिंग फिर से मुंह में उठाया और पहले की भाँति चूसना शुरू कर दिया। साथ ही अपनी टांगों के बीच की दरार को मेरे मुँह के ऊपर रगड़ने लगी। थोड़ी देर तक अजीब लगने के बाद मुझे इसमें भी आनन्‍द आने लगा। मैंने खुद ही अपना मुँह खोल दिया और उनकी योनि के दोनों होठों को चूसना शुरू कर दिया।
काफी देर तक हम दोनों इस अवस्‍था का आनन्‍द लेते रहे। फिर अचानक मेरे लिंग से वो ही द्रव निकलने लगा जो करीब एक घंटा पहले निकला था। मैंने महसूस किया कि दीदी की योनि से भी हल्‍की हल्‍की बारिश मेरे मुँह पर हो रही है जिसे चाटने पर कसैला नमकीन स्‍वाद महसूस हुआ।
दीदी ने पूछा- कैसी लगी मेरी मलाई?
अब मुझे समझ में आया थोड़ी देर पहले दीदी किस मलाई की बात कर रही थी। मैंने कहा, "बहुत अच्छी, बहुत मजा आया दीदी।"
मैं दो बार स्‍खलित हो चुका था। पहली बार दीदी के हाथों में और दूसरी बाद दीदी के मुँह में। मैं खुद को आनन्‍द की पराकाष्‍ठा पर महसूस कर रहा था।
परन्‍तु दोस्‍तो, अभी तो असली आनन्‍द बाकी था। दीदी ने मेरी तंद्रा भंग करते हुए फिर पूछा- इससे भी ज्‍यादा मजा चाहिए?
अब मेरे चौंकने का समय था, मैंने कहा- दीदी, मैंने इतना ज्‍यादा मजा जीवन में कभी नहीं पाया। ऐसा लग रहा है कि मैं जन्‍नत में हूँ। क्‍या इससे भी अधिक मजा मिल सकता है?
दीदी बोली- अभी तूने खाली जन्‍नत का दरवाजा देखा है, जन्‍नत के अंदर तो गया ही नहीं।
इतना बोलकर दीदी ने मेरे पूरे बदन को नीचे से उपर तक चाटना शुरू कर दिया, यह मेरे लिये अनोखी बात थी। मैं भी प्रत्‍युत्‍तर में वैसा ही करते हुए दीदी का ऋण चुकाने को प्रयत्‍नशील था।
करीब पन्‍द्रह मिनट तक हम दोनों एक दूसरे के बदन को इस प्रकार चाटते रहे और पसीने से तरबतर नमकीन स्‍वाद का आनन्‍द लेते रहे।
मैंने महसूस किया कि मेरा लिंग फिर से करवट लेने लगा है और एक नई पारी खेलने के लिये तैयार है। अपने पहले दोनों स्‍खलन के अनुभवों को देखते हुए मुझे इस बार कुछ नया होने की उम्‍मीद थी। मेरा लिंग उठकर अपने गुरू यानि मेरी दीदी को सलामी देने लगा और उनकी नाभि से टकराने लगा।
दीदी ने मुझे छेड़ते हुए कहा- तेरे पप्‍पू को चैन नहीं है क्‍या? दो बार मैं इसको मैदान में हरा चुकी हूँ, फिर से कुश्‍ती करना चाहता है? मैंने कहा- दीदी, इस कुश्‍ती में इतना मजा आ रहा है कि बार-बार हारने का दिल कर रहा है।
"यही तो नए पहलवान की खूबी है। मैंने ऐसे ही थोड़े इसे चुना है।" दीदी ने कहा।
उन्होंने दो बार उस 'चेले' को ठुकठुकाकर उसकी सलामी स्वीकार की और पूछा- तैयार है ना?
"हाँ दीदी !" मैंने उत्साह से कहा।
दीदी ने एक बार फिर से मेरा लिंग अपने मुलायम हाथों में ले लिया। लिंग की सख्ती और विकरालता देखकर बोली- लगता है, इस बार तू मुझे हराने के मूड में है।
और वो मुझे नीचे लिटा कर मेरे टांगों के दोनों ओर अपनी टांगें करके मेरे ऊपर बैठ गई। मैं उत्सुक शिष्य की तरह उनकी हर क्रिया देख रहा था और उसका आनन्‍द ले रहा था। मुझे आश्चर्य में डालते हुए दीदी ने अपनी टांगों के बीच की दरार को मेरे लिंग पर रखा और हल्‍का सा धक्‍का लगाया। और मुझे लगा कि मेरा लिंग ही गायब हो गया। मेरे पेड़ू की सतह उसकी पेड़ू की सतह से ऐसे मिली हुई थी जैसे वहाँ कभी कुछ था ही नहीं।
कहाँ चला गया?
दीदी मेरे ऊपर बैठ कर हल्‍के-हल्‍के आगे-पीछे हिलने लगी, बोली- अब बताओ, कैसा लग रहा है। पहले से ज्यादा मजा आ रहा है कि नहीं?
सुखद एहसास से मेरा कंठ गदगद हो रहा था। योनि के अन्‍दर लिंग के रगड़ खाने का आनन्‍द तो पिछले दोनों बार के आनन्‍द से बहुत ही अलग और उत्‍तेजक था। सचमुच यही जन्‍नत है। ऐसा लग रहा था जैसे अब तक मैं कहीं रास्ते में था और अब मंजिल पर पहुँच गया हूँ।
दीदी बोली- अब तक जो जन्‍नत तुझे बाहर से दिखाई दे रहा था, अब तू उस जन्‍नत के अन्‍दर प्रवेश कर गया है।
मैंने भी दीदी को खुशी देने के लिए नीचे लेटे लेटे ही उनके दोनों वक्षों को सहलाना शुरू कर दिया। नशे में मेरी आँखें मुंद गईं। वो अपना काम करने में व्‍यस्‍त थी और मैं अपना।
अचानक दीदी की हरकतें तेज हो गईं। अपने पेड़ू को मुझ पर जोर से मसलती हुई मुँह से अजीब-सी मोटी आवाज में 'आह.....आह.......' निकालने लगी।
मैंने घबराकर पूछा- क्‍या हुआ?
दीदी ने झुककर मुझे चूम लिया।
मुझे इत्मीनान हुआ, कुछ गड़बड़ नहीं है। शायद सम्‍पूर्ण आनन्‍द की प्राप्ति होने वाली है।
दीदी ने कहा- मेरा तो हो गया। अब हिम्‍मत नहीं है।
लेकिन मुझे मंजिल नहीं मिली थी। मैं कमर जोर जोर से उचकाकर उसे पा लेने के लिए बेचैन था।
दीदी ने कहा- तेरा दो बार हो चुका है ना। इसलिए थोड़ा समय लगेगा।
वो मेरे ऊपर से उतर गई और हाथ से मेरा लिंग पकड़़कर तेजी से आगे पीछे करके सहलाने लगी।
मैंने कहा- दीदी, ऐसे वो मजा नहीं आ रहा जो जन्‍नत के अन्‍दर आ रहा था।
दीदी फिर से मेरे ऊपर बैठ गई और दोबारा से मेरे लिंग को अपनी जन्‍नत में धारण कर लिया। अब फिर से मुझे वही रगड़ का आनन्द मिलने लगा। फिर से जन्‍नत का मजा मिलने लगा। पुन: मैं फिर से दीदी के वक्षों को सहलाने लगा।
दीदी ने मेरी तरफ देखा और बोली- इस बार की कुश्‍ती में तूने मुझे हरा दिया। आखिर तूने बदला ले ही लिया।
कुछ देर बाद मेरे लिंग से तेजी से स्‍खलन होने लगा।
दीदी भी आह........ आह........ करती फिर स्खलित होने लगी। हम दोनों एक साथ स्‍खलित हो गये, और सम्‍पूर्ण आनन्‍द की प्राप्ति हुई।
तो पाठकों यह थी मेरे यौवन के प्रथम गुरू की दीक्षा, जिसका मैं आजीवन आभारी रहूँगा।
पाठकों यह मेरा प्रथम प्रयास है और कहानी मेरे साथ हुई सत्‍य घटना पर आधारित है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्‍य दें। अच्‍छी या बुरी मेरी कहानी जैसी भी लगी हो प्रतिक्रिया अवश्‍य दें। मेरी आगे आने वाली कहानियों को भविष्‍य आपकी इसी प्रतिक्रिया पर निर्भर है।

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